तर्जनी छोड़ो कुछ कदम तुम खुद चलो
गिर कर उठो फ़िर फ़िर, राह की पहचान कर लो
जान लो परछाइयों को मुश्किलों के दौर में
ज़िन्दगी जद्दोजहद का नाम कर लो I
मैं तुम्हारे साथ कब तक रह सकूँगा, तुम बात मेरी मान लो
जाग जाओ अब खुमारी छोड़ कर
भाँप लो मौसम की अँगड़ाइयों को
रुख हवा का मोड़ने का हौसला दिल में लिए
फ़िर फ़िर तराशो उम्मीदों को, उन्हें फ़िर से जवाँ कर लो I
मैं तुम्हारे साथ कब तक रह सकूँगा, तुम बात मेरी मान लो
आएँगी हर पग हज़ारों मुश्किलें
आज़माएंगी तुम्हें हर मोड़ पर
धैर्य रख कर विवेक से लो फ़ैसले
राह अपनी ज़िन्दगी की, कुछ तो तुम आसान कर लो I
मैं तुम्हारे साथ कब तक रह सकूँगा, तुम बात मेरी मान लो
मोहिनी के रूप से मोहित हों जब भी इन्द्रियाँ
मोह जब जब डराए और माया डाले बेड़ियाँ
विचलित न होना कर्तव्य पथ से तुम कभी
सक्षम करो मस्तिष्क को, मन को तुम अपना मान कर लो I
मैं तुम्हारे साथ कब तक रह सकूँगा, तुम बात मेरी मान लो