चल पड़ा जिस दिन से मैं माँ, गोद तेरी त्याग कर
चलता रहा हूँ मैं सतत एक ऐसी राह पर
राह दुर्गम है बहुत और अज्ञात है गंतव्य मेरा
हैं दिशाएं घूमतीं हर तरफ छाया घनेरा
थक चुका हूँ मैं बहुत मैं तनिक विश्राम कर लूँ
हे माँ! मुझे हिय से लगा ले मैं अमिय स्नान कर लूँ
काँधों पर जिसके मैं खेला और सोया वक्ष पर
अंक में जिसकी छुपा, जब जब डरा मैं सहम कर
तर्जनी जिसकी पकड़ कर पग प्रथम मैं ने उठाया
बस चरण-रज ले के उनकी मैं तनिक अभिमान कर लूँ
थक चुका हूँ मैं बहुत मैं तनिक विश्राम कर लूँ
हे तात! मुझे उर से लगा ले मैं अमिय स्नान कर लूँ