असहाय सा हो जाता हूँ,
जब बच्चों का दम घुटता है,
आंखों में जलन की शिकायत करते हैं,
सब धुंधला धुंधला दिखाई देता है,
असहाय सा हो जाता हूँ।
जब कचरे के पहाड़ मुंह चिढ़ाते हैं,
सड़कों की धूल स्वागत करती है,
पेड़ों को काटा जाता है,
असहाय सा हो जाता हूँ।
जब खोखले वादे दोहराए जाते हैं,
केवल राजनीित को चमकाया जाता है,
लोगो को मूखर् बनाया जाता है,
असहाय सा हो जाता हूँ।
लोग जान कर भी कुछ प्र यत्न नहीं करते,
आने वाली पीढ़ी की बिल्कुल चिंता नहीं करते,
अपने स्त र पर कोई शुरुवात नही करते,
असहाय सा हो जाता हूँ|

अमित कुमार
संस्थापक -इको प्र बंधन
पयार्वरणिवद्
विकेन्द्रीकृत मॉडल के माध्यम से भारत को स्व च्छ एवं सुन्दर बनाने की दशा में एक स्टाटर्प के तौर पर आगे
बड़ते हु ए।



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