वर्तमान समय के बदलते हुए साहित्यिक, राजनीतिक परिदृश्य और उसके अनुरूप बदलते समय और परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में स्त्री प्रतिरोध की रचनाओं की ओर ध्यान ध्यान आकर्षित करने का एक विनम्र प्रयास है यह क़िताब ‘एक दस्तक’!
अपने जीवन की तरह ही स्त्री की साहित्यिक यात्रा भी कभी सहज- सरल नहीं रही। मगर हर धारा के विरुद्ध जूझती हुई वह आज जिस मुकाम तक पहुंची है , उसे समझना एक पूरे समाज की विकास यात्रा को समझने के लिए ज़रूरी हो जाता है।
समाज में मौजूद तमाम वर्जनाओं और सांकलों से प्राणपन जूझ रही स्त्रियों का भीतर-बाहर का संघर्ष महिला साहित्यकारों की रचनाओं में पर्याप्त स्पष्ट हो कर उभरा है। मौन, अबला प्रतिरोध का शनैः-शनैः सुदृढ़ आवाज़ बनना, शब्दों में तब्दील होने के प्रस्थान बिंदुओं को चीन्हना इस पुस्तक में संकलित कहानियों में सहज-संभव है। कुल मिला कर इन कहानियों को पढ़ना अपने समय-समाज को उसकी तमाम उथल-पुथल और समसामयिक चिंताओं, प्रश्नों और चुनौतियों के साथ समझना-जानना है।