भारत त्यौहारों का देश है। यह हम सभी भारतवासी जानते हैं और सिर्फ़ इतना ही नहीं; भारत के त्यौहारों में जितनी विविधताएं पाई जाती हैं उतनी शायद ही किसी अन्य देश में मिले।
तेलंगाना में क्षेत्रीय पर्व के रूप में मनाया जाने वाला ‘बतुकम्मा पर्व’ एक रोचक त्यौहार है। यह त्यौहार तेलंगाना का सांस्कृतिक प्रतीक है।
बतुकम्मा का अर्थ होता है- ‘देवी जिंदा है’। इसे फूलों का पर्व कहा जाता है। सातवाहन संवत के अमावस्या तिथि से शुरू होकर पूरे 9 दिनों तक चलने वाला यह पर्व तेलंगाना की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जाना जाता है। सर्दी के मौसम की शुरुआत में यह पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार में मुख्य रूप से कुंवारी लड़कियां बड़ी ही तल्लीनता के साथ अपनी सहभागिता दिखाती हैं।
कुंवारी लड़कियों के द्वारा इस पर्व को मनाने का उद्देश्य यह होता है कि उन्हें अपनी पसंद का जीवनसाथी मिले। इसके अलावा शादीशुदा महिलाएं भी इस पर्व को अपने परिवार के साथ सुख समृद्धि की कामना के लिए मनाती हैं। इस प्राचीन पर्व को तेलंगाना की हर पीढ़ी उतने ही उत्साह और रचनात्मकता के साथ मनाती है।

अभी हमारा देश कोरोना महामारी के प्रकोप से जूझ रहा है। कई त्यौहारों को सावधानी के साथ से मनाया जा रहा है। इसके बावजूद तेलंगाना में इस बार सुरक्षा और सावधानी के साथ पूरे प्रदेश में इस पर्व को मनाया जाएगा।
इस बार यह पर्व 16 अक्टूबर से शुरू होकर 24 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। पूरे 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान पूरे तेलंगाना का माहौल त्यौहारमय होता है।
कोरोना महामारी के कारण सरकार सावधानीपूर्वक इस पर्व को खुशी के साथ मनाने में यहां के लोगों की मदद कर रही है। इस बार यहां की सरकार घर-घर जाकर 18 वर्ष से ऊपर की लड़कियों को बतुकम्मा साड़ी बांट रही है। तेलंगाना सरकार इस बार 1.5 करोड़ बतुकम्मा साड़ी बाँट रही है।
यह पर्व बहुत ही बहुरंगी होता है। इसमें फूलों से फूलों की पूजा की जाती है। इस पर्व के दौरान हर घर लोकगीतों से गुंजायमान रहता है। इस पर्व में गीतों की विशेष प्रधानता होती है। यह अपने आप में विशिष्ट और रोमांचकारी होता है। हर घर की महिलाएं रंग-विरंगे विधान में सज कर गीत गाने और नृत्य करने जैसे मनोरम कामों को करती हैं। यह दृश्य अपने आप में विहंगम होता है।
बतुकम्मा पर्व मनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से प्रकृति के साथ जुड़ी हुई है। इस अवसर पर कई छोटे-बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
इस पर्व की एक और खासियत यह है कि विदेशी महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस पर्व में शामिल होने के लिए आती हैं। पूर्ण रूप से महिलाओं पर केंद्रित इतना बड़ा पर्व इस प्रदेश में महिलाओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
यह पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। कई प्रकार के फूलों से 7 लेयर का ‘गोपुरम मंदिर’ की आकृति का सुंदर निर्माण किया जाता है। इसमें कई प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों को प्रयोग में लाया जाता है। महिलाएं फूलों से अपने घर-आँगन को सजाती हैं। इसके बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यहां दीवाली मनाई जा रही हो।
यह पर्व लगभग 1000 साल प्राचीन है। स्वच्छता और प्रकृति प्रेम के नजर से भी यह पर्व विशिष्ट है। लड़कियां इस पर्व के उपलक्ष्य में अपने घर के आंगन की सफाई करती हैं और बड़े ही सुंदर ढंग से इसे सजाती हैं।
तेलंगाना में हो रही मूसलाधार बरसात ने यहाँ जान-माल की काफी क्षति पहुँचाई है, ऐसे में ज़ाहिर है कि इस बार बतुकम्मा का पर्व थोड़ा फीका ही रह जाए। तेलंगाना के लोग अभी दोहरी मार झेल रहे हैं- एक कोरोना महामारी की और दूसरा बाढ़ की।
गौरतलब है कि पूरे देशभर में कोरोना महामारी के कारण सभी पर्व-त्यौहारों को सीमित रूप में ही मनाया जा रहा है। इस प्रकार, हो सकता है कि तेलंगाना में भी बतुकम्मा का रंग इस बार थोड़ा फीका रह जाए।



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