गुरु गोविन्द सिंह जयंती
हमारा भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है . यहाँ हर धर्म ने मानव को ज्ञान रुपी बहुत बड़ी पूँजी दी है। ऐसे ही हमें अपने सिख समुदाय से मिला एक धर्म ‘खालसा पंथ ’ . खालसा पंथ की स्थापना सिख के दसवें एवं अंतिम गुरु “गुरु गोविन्द सिंह ” ने की थी। इनका जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सन 1666 ई विक्रम संवत को हुआ था . इनके जन्म दिवस को ही गुरु गोविन्द सिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। वो एक महान योद्धा, आध्यात्मिक नेता , एक भक्त व एक कवि भी थे।
गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना में सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर के पुत्र रूप हुआ . चार वर्ष पटना में रहने के बाद उन्होंने हिमाचल में अपनी शिक्षा आरम्भ की . वहाँ उन्होंने फ़ारसी, संस्कृत और युद्ध कौशल की शिक्षा पाई .
गुरु तेगबहादुर सिंह के बलिदान रूप में सिर कटवा देने के बाद गोविंद सिंह को सिखों के दसवें गुरु के रूप में चुना गया।
गुरु गोविंद सिंह की भुजाओं में जितना शौर्य था उनका दिल उतना ही कोमल। वो मानव मात्र को जीने का सलीका सीखा रहे थे. वो सबको आध्यात्मिक जागृति सन्देश देते, नैतिकता का पाठ पढ़ते, प्रेम और आनंद की चारो ओर ऐसी वर्षा होती कि आनंदपुर आनंदधाम बन जाता .
उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो की सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है, उसका निर्माण किया। उन्होंने पांच खालसा का महत्व बताया – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा . अपने शौर्य का पंचम उन्होंने ऐसा लहराया की कई बड़े से बड़े वीर भी उनके सामने झुक गए .
लाला दौलतराय, ने गुरु गोविन्द सिंह को पूर्ण पुरुष बताया है . गुरु गोविन्द सिंह नेअनेक रचनाएँ कीहै जिनमें कुछ है – जाट साहिब, बिचित्र नाटक, चंडी चरित्र, जफरनामा इत्यादि. इन्होने ही गुरु ग्रन्थ साहिब को पूरा किया था और सिखों को उनकी वाणी ”वाहे गुरु दा खालसा, वाहे गुरु दी फतह” दी ।
ऐसे महापुरुष का जन्म दिवस ही उनकी जयंती के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है। इस दिन सिखों द्वारा प्रभात फेरी निकली जाती है और गुरुद्वारों में सेवा भी की जाती है। कीर्तन व लंगर से पूरा समाज में प्रेम और भक्ति गूंजा करता है। गुरु जी की कथाएं हमे याद दिलाती है उनका सन्देश- भगवान की सच्ची भक्ति मनुष्यों से प्रेम करना ही है।
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