प्रथम विश्व युद्ध पहला ऐसा युद्ध था जो ज़मीन, वायु और जल पर एक साथ पूरी दुनिया में लड़ा गया था। कई सैनिकों को घर से इतनी दूर जाने का कोई अनुभव भी नहीं था। पत्राचार ही संवाद के साधन थे जो सैनिकों और उनके प्रियजनों के मनोबल बनाये रखते थे।
ऐसा ही एक अनाथ युवा सैनिक था जोसफ जो अपनी प्रिय पत्नी डोरोथी को टाइफाइड के बुखार में छोड़कर युद्ध के लिए आया हुआ था। बहुत दिनों से डोरोथी का कोई पत्र न मिलने के कारण उसे उसकी चिंता सता रही थी।
सभी उसे समझाते ” डोरोथी स्वस्थ हो गयी होगी। युद्ध में पत्र मिलने में समय लग ही जाता है। इतना विकल मत हो। ” मगर वह तो खुद को सांत्वना नहीं दे पा रहा था। इस संसार में केवल डोरोथी ही उसकी अपनी थी और उसकी कोई खबर न होने से वह बेहद बेचैन था। असावधान होने की वजह से दो बार गोली लगते लगते बची।
“जोसफ ध्यान से !!!!” मगर वह सुन नहीं पाया और लैंड माइन पर पैर पड़ते ही धमाका हो गया।
” सोल्जर डाउन ” की आवाज़ लगायी गयी और आनन फानन में उसे सैनिक अस्पताल पहुंचा दिया गया। दायाँ पैर घुटने से उड़ गया था और गंभीर चोट आयी थी। दवा पट्टी हुई और मॉर्फीन का इंजेक्शन दिया गया। एक हफ्ते बाद भी होश नहीं आया परन्तु नींद में चिल्लाता ” डोरोथी कहाँ हो? मुझे अपने पास बुला लो ”।
आठवें दिन उसका एक साथी एक पत्र लेकर आया। बड़े बेमन से जोसफ ने पढ़ने को कहा मगर आश्चर्य! पत्र उसकी प्रिय डोरोथी का था।
” प्रिय जोसफ लम्बी बीमारी के बाद मैं स्वस्थ हो गयी हूँ और तुम्हे देखने के लिए बेचैन हूँ। अपना ख्याल रखना और जल्दी लौट आना।”
डोरोथी की चिट्ठी ने जादू का काम किया और जोसफ जल्दी ही ठीक हो गया। बस वह अपनी एक टांग गवां बैठा था।
कुछ दिनों बाद मेजर साहब ने जोसफ को बुलाकर कहा ” जोसफ तुम्हे सेना निवृत्ति दी जा रही है। घर जाकर आराम करो। ”
डोरोथी से मिलने की उत्कंठा में गाडी में बैठा जोसफ मुस्कुरा रहा था।
एक पत्र की आश्चर्यचकित करने वाली क्षमता और युद्ध जैसे हालातों में भी निर्बाध रूप से पत्राचार बनाये रखने के डाक विभाग के संकल्प को नमन है।
नोट: यह एक काल्पनिक कृति है। जीवित अथवा मृत किसी भी व्यक्ति से किसी भी प्रकार की समानता पूर्णतः संयोग हो सकता है