नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के साथ ही देश में शिक्षा पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षा के संबंध में महात्मा गाँधी और विवेकानद जी के विचारों के अनुसार मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास सिर्फ शिक्षा से हो सकता है । स्वामी विवेकानंद के अनुसार मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। ‘शिक्षा’ का अर्थ जानने के लिए शिक्षा का शाब्दिक अर्थ देखना चाहिए जो इसे सीखने एवं सिखाने की क्रिया बताता है ,परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य होता है मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत करना । शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है और जीवन में तरक्की के रास्तें खुलते हैं।
नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया और इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा है। नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा व्यवस्था में 10+2 सिस्टम को खत्म कर 5+3+3+4 सिस्टम को लाया गया है। बदलते समय के साथ एक नई विश्व व्यवस्था खड़ी हो गई है और इस बदलते ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से भारत के एजुकेशन सिस्टम में बदलाव करने भी बहुत जरूरी है। स्कूल से 10+2 को बदलकर 5+3+3+4 कर देना इसी दिशा में उठाया गया कदम है। नयी शिक्षा नीति में ऐसा प्रावधान है कि छात्रों को ग्लोबल सिटीजन बनाने के साथ- साथ उनको अपने जड़ों से भी जोड़कररखा जाये । 5+3+3+4 सिस्टम का मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा।
क्या है 5+3+3+4 फार्मेट का सिस्टम- स्कूल शिक्षा का नया ढांचा
इस सिस्टम में पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे आएंगे । फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। ।
प्रीप्रेटरी स्टेज- इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी।आठ से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें आएंगे । इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी ताकि उन्हें प्रायोगिक ज्ञान मिल सके ।
मिडिल स्टेज – इसमें कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स अर्थात स्किल डेवलपमेंट भी शुरू हो जाएंगे।
सेकेंडरी स्टेज- कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी ताकि बच्चे जो चाहें पढ़ सकें ।
हर देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को अपने राष्ट्रीय मूल्यों के साथ जोड़ते हुए, अपने राष्ट्रीय ध्येय के अनुसार सुधार करते हुए चलता है ,ताकि देश की शिक्षा प्रणाली अपनी वर्तमान औऱ आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तैयार करे। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का आधार भी यही सोच है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के नए भारत की नींव तैयार करने वाली है।
खुशी की बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद देश के किसी भी क्षेत्र से या वर्ग से ये बात नहीं उठी कि इसमें किसी तरह का भेदभाव है। यह संकेत है कि लोग वर्षों से चली आ रही शिक्षा प्रणाली में बदलाव चाहते थे। अभी तक हमारी शिक्षा व्यवस्था में ”क्या सोचना है पर ध्यान केंद्रित रहा है जबकि इस शिक्षा नीति में ”कैसे सोचना है पर बल दिया गया है। नई शिक्षा नीति ने 34 साल पुरानी शिक्षा नीति को बदला है, जिसे 1986 में लागू किया गया था। इस नई नीति का लक्ष्य भारत के स्कूलों और उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सुधार करना है कि भारत दुनिया में ज्ञान का सुपरपॉवर कहलाए।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु –
- नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 की शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए है ।
- नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी. शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साली की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास होगी . अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पाँचवी क्लास को रखा गया है. इसके बाद मिडिल स्कूल याना 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा. सभी छात्र केवल तीसरी, पाँचवी और आठवी कक्षा में परीक्षा देंगे. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी.
- कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं
- अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा. इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापनी की जाएगी.
- स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और नई शिक्षा नीति में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से परीक्षा कराने की बात कही गई है.साथ ही रीजनल स्तर पर, राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर ओलंपियाड परीक्षाएं कराने के बारे में भी कहा गया है. आईआईटी में प्रवेश के लिए इन परीक्षाओं को आधार बना कर छात्रों को दाख़िला देने की बात की गई है.