दिसंबर का महीना, कंपकंपाती ठंड और क्रिसमस का उल्लास सबके सिर चढ़ के बोल रहा था।
जैसा कि हम जानते हैं, क्रिसमस हर वर्ष , साल के अंत में 25 दिसंबर को प्रभु ईशा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की महत्ता विषेशकर ईसाईयों के लिए सर्वाधिक होती है। मान्यता यह है की यीशु ईश्वर के पुत्र थे । इस मान्यता में कितनी सच्चाई है किसी को नहीं पता लेकिन यीशु ने मनुष्य को मनुष्यता की एक नयी परिभाषा बताई और यह परिभाषा थी – परोपकारिता की, सद्विचार की, आपसी भाईचारे की ।
जूली क्रिस्टिया एक ऐसी लड़की थी जिसे केवल जीवन से लेना ही जाना था। या यूँ कहे की उसे परोपकारिता का मतलब ही नहीं पता था। हमेशा अपने अहम में डूबी, जूली ये भी नहीं देख सकती थी कि उसके आस पास कितनी उदासियाँ है ।
जीवन की गाड़ी चल रही थी और देखते ही देखते साल का वह दिन भी आ गया जिसका इंतज़ार जूली समेत उसके पूरे परिवार के लोग वर्ष भर करते है।
क्रिस्मस की तैयारियाँ शुरू हो गयी। केक, वाइंस, एक्समस ट्री सब आ चुका था। कहते है -क्रिस्मस की रात एक मौजे में अपनी मनोकामनाएं लिख के रख देने से वह मनोकामना पूरी हो जाती है ।
यह भी मान्यता है की सन्ता क्लॉज़ सबके लिए ख़ुशियाँ लाते है। जूली ने भी अपनी सारी फरमाइशें लिख एक मौजे में रख दी और सोने चली गयी।
रात में उसने एक सपना देखा। उसने सपने में ईशा मसीह को देखा और उन्हें नमस्कार किया ।
यीशु बोले, “जूली, तुमने अपनी फरमाइशों की थैली में अपने लिए इस बार ढ़ेर सारी ख़ुशियाँ मांगी है । मैं तुम्हें उन सबके साथ-साथ सुकून भी देना चाहता हूँ। लेकिन इसके लिए तुम्हें मेरा कहा मानना होगा।”
जूली ने उत्सुकता पूर्वक पूछा, “मुझे क्या करना होगा ?”
यीशु ने कहा, “तुम्हें एक महीने सबकी यथा सम्भव मदद करनी होगी। मुझे वचन दो तुम एक महीने तक उसे खाना दोगी जो तुम्हें भूख से तड़पते मिले। तुम उनकी मदद करोगी जो लाचार है। और किसी से एक महीने ऊँची आवाज़ में बात नहीं करोगी।”
जूली ने कहा, “ठीक है प्रभु ! आप जैसा चाहते है मैं वैसा ही करुँगी।”
अगला दिन क्रिस्मस के त्यौहार का था। जूली चर्च गयी और वहाँ उसने देखा एक माँ अपने बच्चे को लिए ठंड में भूख से तड़प रही थी। जूली को अपना वादा याद आया और उसने तुरंत उन्हें खाने को केक और ठंड से बचने के लिए अपना शाल दे दिया।
जूली को हालांकि पहले अपना शाल देने का मन नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही उस ग़रीब ने एक शाल के बदले उसे अनगिनत दुआएँ दी वो मुस्कुरा पड़ी और इस मुस्कान में एक अलग ही सुकून था।
अगले एक महीने तक जूली ने ऐसे ही अनगिनत दुआओं से अपनी झोली में भर्ती रही ।
अब उसे ख़ुशियों का सही मतलब पता चल गया था । देखते ही देखते एक ऐसा दिन भी आ गया जिस रोज उसने किसी की मदद न की उसे चैन नहीं मिलता।
एक महीने के बाद यीशु फिर उसके सपने में आये और उसे कुछ और भी मांगने को कहा। इस बार जूली ने माँगा, “मैंने इस एक महीने में जितनी भी दुआएँ कमाई उससे लोगों का भला हो और मुझे कुछ नहीं चाहिए।”
यीशु ने सपने में आ कर जूली के अहंकार को बुझा उसमें परोपकारिता की एक नयी ज्योति जलाई जिससे कइयों के जीवन में प्रकाश फ़ैल गया।
नोट: यह एक काल्पनिक कृति है। जी



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