पसीने की रोटी
“आज कुछ होड़ सी लगी है . शहर से आज बड़े बड़े अफ़सर नेता भी आये है . सुना है आज हमारे सम्मान में कुछ शब्द भी कहे जाएँगे। कुछ दान भी मिलेगा हमे आज। भाई, हम तो ठहरे किसान जाति। हमारी याद किसी एक दिन ही आती है इन लोगों को। अच्छा वो सब छोड़ ! देख अब हमे दान देते हुए हमारे साथ सब फोटो खिचवायेंगे।” ऐसी ही कुछ आवाजें आज गांव में गूँज रही थी। हो भी क्यों न। आज तारीख़ २३ दिसंबर जो है। भारत भर में आज के दिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। नए लोग, नया जमाना और किसानों का देश कहे जाने वाले भारत को किसानों के सम्मान के लिए एक विशेष दिन में समेट लिया गया है। ख़ैर, ये तो हुई बातें, जो बस कहने सुनने में ही अच्छी लगती है.
इन्ही किसानों में एक किसान था। नाम -बिरजू। बिरजू एक मेहनती किसान था। उसके खेत से केवल उसके घर की नहीं बल्कि कइयों के रसोई में रोटी के टुकड़े आते थे. एक रोज की बात है। बिरजू अपने खेत से गेहूँ काट , शहर की ओर बेचने जा रहा था। रास्ता लम्बा था सो कई जगह ठहरना हुआ। सबसे पहले वह एक आम के पेड़ के नीचे बैठ सुस्ताना तय किया। वहाँ उसने देखा एक कपड़े का व्यापारी भी वही बैठा था। धनी घर का मालूम पड़ता था सो खाने की तो कमी थी नहीं। अपनी पोटली से कुछ रोटियाँ निकाली और खाने लगा। किसान ने महसूस किया की वह खा कम और बर्बाद ज्यादा कर रहा था। किसान ने उनसे जाके कहा कि व्यापारी भाई! ये रोटियाँ केवल आपके पैसे की गुलाम नहीं है कइयों के पसीने की कमाई होती है यह रोटी। पता नहीं व्यापारी पर इसका कितना असर हुआ लेकिन बिरजू ने अपनी बात रखी और आगे बढ़ गया। कुछ ही देर में शहर आ गया। किसान ने एक थोक विक्रेता को अपनी अमानत दी और कुछ पैसों के साथ कितने रसोई की दुआओं के साथ आने ही वाला था की उसकी मुलाकात एक अफ़सर की बेटी से हुई। इसे मुलाकात कहना तो ठीक नहीं होगा बस इतना की वह किसान से टकरा गयी थी। लेकिन शायद भूख की हरबड़ी थी या अपने महंगे कपड़े को किसान के पसीने की दुर्गंध से बचाना था इसलिए एक अजीब सा घृणा वाला सकल बना वहां से निकल ली और फिर रास्ते में ही उसके पिता जिनसे जाके वो कह रही थी -”पापा , वो शायद एक ग़रीब- फटीचर से टकराने के कारण मेरे कपड़ों में ये निशान आ गया।” अरे ! यह तो वही साहब है जिन्होंने किसान दिवस वाले दिन हमे सम्मानित किया था। लेकिन तभी पापा ने भी कहा “बेटा तुम्हें ध्यान देना चाहिए। ये किसान वर्ग मिट्टी से भरे होते है और उनका पसीना उन्हें कीचड़ बना देती है। “
“और उसी कीचड़ में उगते है तुम्हारे निवाले “ इतना कह बिरजू की आँखों में पानी आ गया और उसने वहां से जाना ही ठीक समझा।
नोट: यह एक काल्पनिक कृति है। जीवित अथवा मृत किसी भी व्यक्ति से किसी भी प्रकार की समानता पूर्णतः संयोग हो सकता है ।
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