मकर संक्रांति
जब भी ‘त्योहार ’शब्द हमारे जहन में आता है तो हम अपने भीतर खुशी के तरंगों को महसूस कर सकते हैं। उत्सव को परिभाषित करती है एक विशेष तरीके की खुशी, चारो ओर खुशी से चहकते चेहरों की भावना और उससे जुड़ी अंगिनत कहानियाँ । जब त्योहार की बात आती है तो हम भारतीय संस्कृति के बारे में सोचने से खुद को रोक नहीं सकते। ऐसा ही एक त्योहार है मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति मुख्यतः हिंदुओं का त्यौहार है। यह त्यौहार न केवल भारत बल्कि नेपाल तक में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। मकर संक्राति पौष के महीने में सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है। लम्बे अरसे से ही यह जनवरी के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन मनाया जाता है।
यह त्यौहार अनेक नामों से अलग अलग राज्यों में जाना जाता है . जैसे तमिलनाडु में यह पोंगल नाम से प्रसिद्ध है तो वही उत्तरी भारत में यह मकर संक्रांति है। हरयाणवी लोग इसे माघी कहते है, तो पंजाब ने इसे लोहड़ी के रूप में स्वीकारा है। अलग अलग देशों ने भी इसे भिन्न भिन्न नामों से स्वीकारा है जैसे नेपाल में माघी संक्रांति, बांग्लादेश में पौष संक्रांति, थाइलैंड में सोंगकरन, म्यांमार में थिंयान, श्रीलंका में उझवर तिरुनल, इत्यादि।
नाम के तरह ही इसके मनाये जाने के भी अनेकों तरीके है . इसे मुख्यतः फसल की कटाई के कारण मनाया जाता है . भारत के उत्तरी राज्य में दान का विशेष महत्व होता है और तिल गुड़ से रिश्तों में मिठास बढ़ाई जाती है। दक्षिणी राज्य का पोंगल चार दिनों का उत्सव है जो सूर्य को समर्पित है . इस दिन कई राज्यों में पतंगबाज़ी की जाती है और कई जगह नौका विहार का भी प्रचलन है .
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसका अपना एक अलग महत्व है। शरद ऋतु में सूर्य की किरणें हमे लाभान्वित करती है त्यौहार के बहाने ही सही हम प्रकृति माता गोद में स्वास्थ्य रुपी धन प्राप्त करते है . तिल गुड़ हमारे शरीर को गर्मी प्रदान करते है और हमे एक नयी ऊर्जा प्राप्त होती है।
तरीके चाहे कितने ही भिन्न क्यों न हो! मकसद हर किसी का एक सा ही होता है। तरीके चाहे कोई भी को प्रकृति को इस रोज हर कोई अपनी ओर से शुक्रिया कहता है। त्यौहार एक भावना है जहाँ मनुष्य और प्रकृति की आँगन चहक उठती है।
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