सुबह से स्कूल चहक रहा था।
खासकर छोटे बच्चों में आज एक अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा था।
नहीं, कोई चॉकलेट या टॉफी नहीं बट रही थी।
बस वह कहते हैं ना इंसानों को सबसे प्यारी आजादी होती है। आजादी जीने की, आजादी अपने बातों को दूसरों के सामने रखने की, आजादी अपने भाषा में बोलने की।
हां, ऐसी आजादी मिल गई थी आज उन्हें। जिसके वजह से बच्चे फूले नहीं समा रहे थे।
चूँकि हिंदी दिवस था, हिंदुस्तान की ह्रदय कही जाने वाली हिंदी का मान बढ़ाने के लिए आज सभी स्कूलों में हिंदी बोलने की आजादी थी।
जब से हमारे विद्यालय ‘स्कूल’ बन गए तब से हमारी स्कूल भाषा अंग्रेजी बन गई। लेकिन बाल मन को तो अपनी मातृभाषा ही प्यारी होती है ना । उन्हें क्या पता दुनिया की रस्में और जिम्मेदारियां। इस तरह बच्चों को भी लग गया था कि आज उन्हें आजादी मिल गई थी जो अकसर स्कूल की घंटी के बीच खो जाया करती थी।
इसी मौके पर स्कूल में कार्यक्रम आयोजित किया गया। ‘भाषण प्रतियोगिता’ जिसमें सभी उच्च वर्ग के बच्चों को अपने मत रखने थे। सब ने अपने अपने जो भाषण तैयार किए थे, प्रस्तुत किया। मिस सरिता, हिंदी शिक्षिका सब कुछ देख रही थी और हिंदी के प्रति सब के विचारों को समझने का प्रयास कर रही थी। वैसे तो वो सब के हिंदी के प्रति भाव को जानती थी लेकिन प्रतियोगिता के विजेता को भाव नहीं बल्कि उनके प्रस्तुति ढंग से चुना जाना था।
अंततः सरिता और अन्य जजों ने दसवीं की प्रेरणा को विजेता घोषित किया। प्रेरणा के गले में फूलों की माला डाली गई और एक ट्रॉफी से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम खत्म हुआ। सब अपनी-अपनी कक्षाओं में गए। अभी छुट्टी होने में 2 घंटे बाकी थी और मिस सरिता का दशवीं में पढ़ाना सुनिश्चित किया गया। मिस सरिता कक्षा की ओर बढ़ ही रही थी कि कुछ शोर सुनकर रुक गई।
आवाजें कुछ ऐसी आ रही थी “ आज का ही एक दिन होता है जिस दिन मिस सरिता को थोड़ा भाव मिल जाता है। अब तुम ही बताओ कि अंग्रेजी का जमाना है इसमें हिंदी में रोज़गार करने वालों को क्या ही कहा जाएगा। अवार्ड में भी यह हिंदी की विजेता क्यों लिखवा दिया गया। कोई देखेगा तो क्या समझेगा बस विनर ही लिख देते तो ज्यादा भाव मिलता हमें भी…. ”
और फिर एक जोर की ठहाके की आवाज़ आई। आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी थी। यह आवाज थी प्रेरणा की। वही प्रेरणा जिसने अभी अपने भाषण से हिंदी का मान बढ़ा फूलों की माला में अपना स्थान बनाया।
अब मिस सरिता के पाँव जमीन में धस कर रह गए। आगे बढ़ते भी तो कैसे ! प्रेरणा के गले में पड़ी माला भी मानो फांसी के फंदे के समान हिंदी का गला घोट रही थी।
नोट: यह एक काल्पनिक कृति है। जीवित अथवा मृत किसी भी व्यक्ति से किसी भी प्रकार की समानता पूर्णतः संयोग हो सकता है ।