लो आ गयी लोहड़ी
ये कहानी है वहां की जहाँ की माटी से खुशबू आती है देश के संपन्नता की, जहाँ की भूमि से सोने सा अनाज धरती का सीना चीड़ कर आता है, जहाँ के हर घर से खुसबू आती है मक्के की रोटी और सरसों के साग की , जहाँ के लस्सी के मिठास से हर ज़ुबान में मिठास घुल जाती है। हां, यह हमारे देश का उत्तर-पश्चिम भाग पंजाब है।
नये वर्ष में ताई जी और ताऊ जी इस बार अपने बच्चों के साथ त्यौहार मनाने गांव से जालंधर आये थे। वैसे तो हर बार लोहड़ी गांव में ही मनाया जाता था लेकिन इस बार बच्चे कुछ काम के कारण गांव नहीं जा पा रहे थे तो ताऊ जी ने इस बार उन्ही के तरीके से शहर में त्यौहार मानने का सोचा।
लोहड़ी की तैयारियाँ सुबह से ही हो रही थी। किचेन से तरह तरह के पकवानों की खुसबू आ रही थी। मक्के की रोटी, सरसों का साग, चिकेन और अन्य कई पकवान रसोई की ओर आकर्षित कर रहे थे। सब कुछ करते करते आख़िरकार शाम हुई। रंग बिरंगे परिधान में खिले चेहरे त्यौहार में चार चाँद लगा रहे थे। तापमान कितना कम की बर्फ जम जाए लेकिन लोहड़ी के आग से पास उत्साह से भरे लोग माहौल में नयी ऊर्जा ला रहे थे।
सब कुछ अच्छा बीत रहा था लेकिन पास के एक किसान का घर थोड़ा सूना दिखाई दे रहा था . इस बार शायद उनके बच्चे विदेश से घर न आ पाए। एक बुजुर्ग दंपति को घर के बहार उदास देख ताऊजी को अच्छा नहीं लगा। पूछने पर पता चला की पिछले दिनों से उनकी तबियत ठीक नहीं थी इस कारण कोई विशेष पकवान न बना सके और उमंग न होने के कारण इस बार कोई कार्यक्रम भी नहीं हो पाया। ताऊजी को उनकी यह दशा देखी नहीं गयी लेकिन यूँ ज़बरदस्ती कर उन्हें चलने पर मज़बूर करना भी ठीक न लगा। वह भी उन्ही लोग के साथ बैठ गए और गांव में अपनी परंपरागत लोहड़ी के बारे में बात करने लगे और यथासम्भव उनके अकेलेपन को मिटाने की कोशिश करने लगे चुकी ठंड काफी थी इसलिए उन्होंने अपनी लोहरी से थोड़ी लकड़ियाँ लायी और एक छोटी सी लोहड़ी बना दी। किसी का साथ मिल जाना अकेलेपन से लड़ने का एकमात्र जरिया है। तिल गुड़ ने शरीर को थोड़ी गर्माहट दी और थोड़ी ताऊजी का अपनी ख़ुशी छोड़ किसी को खुशी देने के प्रयास ने। बूढ़े दंपति को यह छोटा सा साथ बहुत अनमोल लगा और उन्हें ऐसा लगा की इस अकेलेपन को एक साथी मिल गया। वह साथी जिसने लोहड़ी के केवल रिवाज नहीं निभाए बल्कि किसी के अंधेरे शाम को आग में जला मित्रता की एक रौशनी भर दी हो।
कुछ देर में उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त की “हमे भी ले चलो वहां जहाँ लोहड़ी जल रही है।” ताऊजी इस बार लोहड़ी केवल मना नहीं रहे थे बल्कि अपनी अच्छाई से दूसरों के अंधेरे को मिटाने का प्रयास कर लोहरी को जी रहे थे।
नोट: यह एक काल्पनिक कृति है। जी
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