लठमार होली
इंसान के प्रगतिपथ का रास्ता होता है उसकी कार्यकुशलता, लेकिन इंसान को उसके भूमि से जोड़े रखती है उसकी परम्पराएँ। त्योहार एक माध्यम है परंपरा को जीवंत रखने का। होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस आदि त्योहार तो विश्वप्रसिद्ध है लेकिन परम्पराओं की सूची में कुछ ऐसे त्योहार भी है जिन्हें किसी ख़ास क्षेत्र तक ही सिमित रखा गया है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के आस पास का एक ऐसा ही त्योहार है “लट्ठमार होली ”. यह राधा और कृष्णा के जन्म स्थान के समीप के इलाके जैसे बरसाना और नंदगांव का एक मुख्य त्योहार है। यह होली के कुछ दिन पहले फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस दिन नंदगांव के लोग बरसाने व बरसाने के लोग नंदगांव जाते है और पूजा अर्चना करते है। उसके अगले दिन यहाँ खूब होली खेली जाती है, रंगों का एक निराला उत्सव होता है तथा एक परंपरागत तरीके से होली खेली जाती है।
यह त्योहार श्री कृष्णा की एक लीला का उत्सव है। मान्यता यह है कि कृष्णा अपने बाल ग्वालों संग कमर में फेंटा लगाए अपनी प्रियशी राधा रानी व अन्य गोपियों संग होली खेलने और हंसी ठिठोली करने बरसाना जाते थे। इस बात पर क्रोधित राधारानी और उनकी सखियाँ सभी लड़कों पर डंडे की वर्षा करती थी और ग्वाले अपनी रक्षा के लिए ढालों का प्रयोग किया करते थे। इसी हंसी ठिठोली की लीला की पुर्नावृति करने के लिए इसे एक परंपरा या त्यौहार का नाम दिया गया।
बरसाने की औरतें नंदगांव से आये पुरुषों पर लाठी का प्रयोग करती है और पुरुष नाचते गाते अपनी रक्षा करते है। चारों ओर खुशी का माहौल होता है और रंगों से भरे इस त्योहार में सभी झूम उठते है। लाखों की संख्या में इस दिन विदेश से कई लोग बरसाने की होली देखने विशेष रूप से आते है।
भारत ऐसे ऐसे अनगिनत त्योहारों से भरा पड़ा है। यह त्यौहार ही तो है तो भागते हुए जीवन को एक ठहराव देते है और एक नयी ऊर्जा का संचरन करते है।



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