जब एक सरकारी दफ्तर में
पहली बार कलम ये बोली थी
जिंदगी की आपाधापी में कब तक गुजारा करोगे
आज नही तो कब प्रकृति की ओर बढ़ोगे
कल जब धुआं दिखाई देगा
चारो और अंधेरा होगा
तब कुछ भी ना कर पाओगे।
जो करना है वो कदम आज ही उठाना होगा
खुद को तैयार आज ही करना होगा
आज ही भविष्य के लिए सोचना होगा
निरंतर प्रयास जारी रखना होगा
नही तो कल सब विनाश हो जाएगा
हमारे बच्चे कहां जायेंगे
तब कुछ भी ना कर पाओगे।
तुम सोचो तो एक बार सही
लोग आप के साथ जुड़ जायेंगे
एक काफिला बन जाएगा
सब मिल कर प्रदूषण को मिटाएंगे
प्रकृति को बचाएंगे
सुन्दर आकाश को निहारेंगे
तब ही कुछ कर पाओगे।
अमित कुमार – पर्यावरण प्रेमी
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