आज खाना बनने में ज्यादा देर हो गई थी, स्वतन्त्रता दिवस था और पूरे दिन का घूमने-फिरने का प्लान था। खाना हो जाने के बाद छोटी ने बहुत ही चौका देने वाला सवाल किया। छोटी अभी सात साल की थी और पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर उसे बाहर लेकर गए थे। उसने कहा ‘दीदी, चलो बाहर सड़क पर से घूम कर आते हैं। रात में कभी मैं बाहर नहीं गई घूमने। रात के 11 बज रहे थे इसलिए हम सभी चौक गए। मैंने छोटी से कहा कि आधी रात हो चुकी हैं अभी जाना ठीक नहीं हैं। लेकिन छोटी मानी नहीं, उसके ज्यादा जिद करने पर मैने फिर समझाने की नाकाम कोशिश की कि इस वक़्त सड़क पर घूमना सुरक्षित नहीं हैं कोई चुरा ले जाएगा। मेरी इस बात से छोटी थोड़ी देर के लिए शांत हुई और फिर कहने लगी ‘लेकिन हम तो आजाद हैं न? मैम तो कल कह रही थी कि हम स्वतंत्र हैं और हमे आधी रात में ही आजादी मिली थी फिर हमें कोई क्यों चुरायेगा?’ छोटी के इस सवाल में जितनी मासूमियत थी उतनी ही जिज्ञासा भी। फिर मुझसे कुछ कहते नहीं बना तो पापा ने छोटी को दुलार करते हुए समझाया ‘हमारे देश की स्वतन्त्रता अभी आधे रस्ते पहुंची हैं इसे तुम तक और दीदी तक पहुंचने में अभी समय लगेगा।’
पता नहीं छोटी समझी या नहीं समझी लेकिन मुझे उस पूरी आजादी का इंतज़ार रहेगा, और शायद छोटी को भी।



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