सभी बच्चों के साथ स्कूल की तरफ से छठी क्लास में दिल्ली क्राफ्ट म्यूज़ियम जाने का मौका मिला था. वहाँ पहली बार बड़े से मुखौटे में एक आदमी को अलग तरह का नृत्य करते देखा. नृत्य करते-करते वो सभी दर्शकों के पास जा रहा था. जब हम बच्चों की बारी आई तो वो सबसे पहले मेरे पास आया और उस समय मैं बहुत घबरा गई, क्योंकि उस वक़्त मेरी उम्र बारह वर्ष रही होगी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मानव है या दानव. बचपन से हम राम-रावण की कहानी देखते-सुनते बड़े हुए हैं. जिसमें अजीब से दिखने वाले लोग दानव होते हैं; जिस कारण मैंने समझ लिया कि ये भी एक दानव है. लेकिन वहाँ बाकी मौजूद लोग बहुत खुश होकर उसका नृत्य देख रहे थे. बहुत बाद में जब ओणम के बारे में पहली बार पढ़ा और टेलीविजन पर देखा तब जाना कि ये दानव-नृत्य नहीं बल्कि वहाँ का एक लोक-नृत्य है. इस नृत्य का नाम है- कुमटी काली (मुखौटा नृत्य). एक और नृत्य उस दिन वहाँ क्राफ्ट म्यूज़ियम में हो रहा था- बाघ का नृत्य. जिसे देखने में हम बच्चों को बड़ा मज़ा आ रहा था. यह नृत्य भी ओणम लोक-नृत्य का हिस्सा है. इसे वहाँ के लोग पुलिकाली (बाघ नृत्य) कहते हैं.
वास्तव में, हमारे देश की संस्कृति विविध लोक-संस्कृतियों से भरी पड़ी है.



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