राजस्थान भारत का अनोखा राज्य है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण यह राज्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। थार रेगिस्तान हो या गुलाबी नगरी कहा जाने वाला शहर- जयपुर या फिर पुराने देशी राजाओं-रजवाड़ों द्वारा बनवाये हुए विशाल किले। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से यह शहर हमेशा से धनी और विविधतापूर्ण रहा है।
यह तमाम सारी बातें तो मैंने बोल दी, इसके बाद मेरे दोस्तों ने अपने कुछ महीनों पहले का अनुभव बताना शुरू किया। हमारे दोस्तों ने राजस्थान में हर साल मनाए जाने वाले करणी माता फेस्टिवल के दौरान राजस्थान में घूमने का अनुभव बताया। मुझे इतना तो पता था कि राजस्थान के बीकानेर से कुछ ही दूरी पर ‘देशनोक’ नामक स्थान पर करणी माता का यह भव्य मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर को ‘चूहे वाला मंदिर’ भी कहा जाता है।
इसे 15वीं शताब्दी में राजपूत राजाओं ने बनवाया था। इससे जुड़ी एक मिथकीय कथा भी है कि अपने बेटे के मृत्यु के बाद करणी माता ने यमराज से उसे वापस जिंदा करने को कहा। यमराज ने उनके बेटे को जिंदा तो कर दिया पर चूहे के रूप में। यही कारण है कि इस मंदिर में चूहों की संख्या बहुत अधिक है और यहां के लोग इन चूहों को करणी माता के वंशज के रूप में देखते हैं। इन चूहों का ‘काबा’ कहा जाता है। मंदिर में रहने वाले इन चूहों को वहां कोई भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचता है।

इसके आगे अब मेरे दोस्त बताने लगे कि यह फेस्टिवल राजस्थान में साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार मार्च-अप्रैल के महीने में और दूसरी बार सितंबर-अक्टूबर के महीने में। इस बार यह मेला 17 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है। मेले के दौरान मंदिर में काबाओं की संख्या बहुत होती है। श्रद्धालु इन काबाओं यानी चूहों को बड़ी आत्मीयता और प्रेम-भाव के साथ लड्डू और दूध अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में सफेद चूहों को देखने वालों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर में काले चूहों की संख्या अधिक होती है।
राजस्थान के लोग करणी माता के अंदर दैवीय-शक्ति का होना बतलाते हैं और करणी माता को देवी के समान पूजते हैं। करणी माता को ‘चूहों की देवी’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक रूप से मान्यता है कि करणी माता का मंदिर बीकानेर के राजपूत राजा ‘गंगासिंह’ ने बनवाया था। इस बार करणी माता फेस्टिवल 17 अक्टूबर से लेकर 26 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है। इस फेस्टिवल की यह भी एक विशेषता है कि साल में दो बार मनाया जाने वाला यह फेस्टिवल नवरात्रि के समय मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान जिस तरह की चहल-पहल और उल्लास का वातावरण बिहार, उत्तर-प्रदेश, दिल्ली और बंगाल में होता है उसी तरह का त्यौहारमय वातावरण राजस्थान में करणी माता फेस्टिवल के दौरान होता है। श्रद्धालु आत्मीयता के साथ इस अवसर पर करणी माता की पूजा आराधना करते हैं।
मेरे दोस्त इस बात का ज़िक्र करते हुए बहुत रोमांचित हो रहे थे कि करणी माता फेस्टिवल के समय राजस्थान में मेला भी आयोजित किया जाता है। इस मेले में श्रद्धालु करणी माता की पूजा करते हैं और अपने घर-परिवार के लिए सुखद भविष्य की कामना करते हैं। मेले का आयोजन एक कमेटी करती है। करणी माता की पूजा यहां भव्य तरीके से की जाती है। पहले करणी माता की आरती की जाती है और उसके बाद श्रद्धालुओं को भोग बांटा जाता है। मेले में कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। दूर-दराज के इलाकों से लोग सज-धज कर इसे देखने आते हैं। मेले में मनोरंजन के लिए कई तरह के झूले भी लगाए जाते हैं। इसके साथ ही साथ मेले में कई तरह के सामानों की खरीद बिक्री भी की जाती है और साथ में खाने-पीने को लेकर स्वादिष्ट व्यंजनों की व्यवस्था होती है।
करणी माता फेस्टिवल राजस्थान की लोक-संस्कृति का प्रतीक है। राजस्थान के लोगों में करणी माता को लकर अपार श्रद्धा देखने को मिलती है । कुल मिलाकर करणी माता फेस्टिवल के समय राजस्थान की सैर जरूर करनी चाहिए।