हिंसा, युद्ध, शीतयुद्ध, हथियार, परमाणु बम, रासायनिक हथियार – इन सब नामों को सुन कर ही मानवता काँपने लग जाती है। ये दौर इसी कपकपाहट का है। जब-जब मानव समाज में ये दौर रहेगा, तब-तब बापू, उनका चरखा, उनकी लाठी और उनके सत्य एवं अहिंसा के उपदेश प्रासंगिक रहेंगे। जब-जब राजनीतिक प्रपंच और तामझाम का अँधेरा फैलेगा, तब-तब गाँधी एक शांति सूर्य के रूप में उदीयमान होते रहेंगे।
दो अक्टूबर महज एक दिवस नहीं, बल्कि चुनौती है, हर उस समाज के लिए जो अनैतिक, कदाचार और असत्य की और अग्रसर हो रहा है। जब-जब हमारा समाज इस विद्रूपताओं से कमजोर होता जायेगा तब-तब गाँधी मजबूती की एक मिशाल बन कर हमारे सामने आएंगे। इसलिए ‘मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी’ नहीं, बल्कि ‘मजबूती का नाम गांधी’ बोलिये।
गाँधी नैतिक और सत्यधर्मा लोगों के लिए मजबूती का नाम है, जबकि अनैतिक, पथभ्रष्ट और कदाचारी लोगों के लिए मज़बूरी। मज़बूरी इसलिए क्योंकि गाँधी और इनका संदेश इन्हें हमेशा आइना दिखता है। ये लोग गाँधी और उनकी शिक्षा का सामना करने पर अपना मुँह नहीं मोड़ पाते और न ही गाँधी को खुल कर नकार पाते हैं। इसलिए, गाँधी ऐसे चरित्र के लिए मज़बूरी हैं।
गाँधी किसी समाज के भीतर की गंदगी को समाज के लोगों द्वारा ही साफ़ करने की सीख देते हैं। गाँधी आत्मनिर्भरता का बहुत बड़ा परिचायक हैं। किसी को कोई उपदेश देने के पहले उसे खुद में उतारना, ऐसे ही तो थे गाँधी। यही कारण है कि गाँधी भारतवर्ष के अग्रणी अभिभावक के रूप में हमारे सामने आते हैं। ‘बापू’ नाम महज़ एक व्यक्ति या समाज का सहारा नहीं है, बल्कि एक पूरी सभ्यता का सहारा है।