चलो अतीत से उजियारा मांग लाये
जब भविष्य अस्पष्ट लगे
जब पहर-पहर प्रहार करे
घड़ी की टिक-टिक प्रलय का सिंघनाद करे
चलो अतीत से उजियारा मांग लाये ।
अतीत में माँ थी, पिता थे
भाई बहनों का शोर था
चूल्हे से उठता धुयाँ था
घर का कोना-कोना उजियारा था ।
अब अपनी ही स्वांस अवसाद दे रहे,
पीड़ा से प्राण भी प्रयाण की तैयारी कर रही,
स्वयं पर लिखे गए शोक सन्देश दिख रहे;
चलो अतीत के उजियारे में समां जाये ।
लेखिका के बारे में:
सत्याग्रह की पुण्य-भूमि मोतिहारी, पूर्वी चंपारण, बिहार की निवासी प्रो. (डॉ.) शालिनी वर्मा ‘लाईफोहोलिक’ एक कम्युनिकेशन प्रोफेसर-सलाहकार, बॉडी-लैंग्वेज विशेषज्ञ, लेखक-स्तंभकार, अभिनेता-मॉडल-पटकथा लेखक के साथ साथ बुक्स 33 और संवादशाला सह-संस्थापक भी हैं।
डॉ वर्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए shalini.verma@books33.com पर लिखें
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सुंदर! इस कठिन समय में यह कविता आशा की किरण जगा रही है।