तुमको ना भूल पाऐंगे ……. हसरत जयपुरी !!
जन्मशती वर्ष (२०२१- २२)
हिंदी और उर्दू ज़ुबान के गीतकार और शायर इक़बाल हुसैन जो हसरत जयपुरी के नाम से मशहूर हुए, का जन्म १५ अप्रैल १९२२ को जयपुर में हुआ। हसरत साहिब के वालिद का नाम नाज़िम हुसैन और वालिदा का नाम फ़िरदौसी बेग़म था. हसरत साहिब को शेऱ और शायरी का बचपन से ही शौक़ था और उनके इस शौक़ को जूनून में तराशने में उनके नाना फ़िदा हुसैन `फ़िदा`, जो कि उस ज़माने में मशहूर शायर हुआ करते थे, का बहुत बड़ा हाथ रहा.
हसरत साहिब १९४० में इसी जूनून को साथ लेकर जयपुर छोड़ कर बम्बई आ गए. गुजर बसर के लिए वहां उन्होंने बस कंडक्टर की नौकरी कर ली और साथ साथ मुशायरों में भी अपना कलाम पढ़ने लगे. पृथ्वीराज कपूर ने किसी मुशायरे में उनका कलाम सुना और वह हसरत साहिब से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने अपने बेटे राजकपूर को उनसे मिलवाया और वहीँ से हसरत साहिब ने फिल्मों के लिए गाने लिखने शुरू किये.
इसके बाद तो बस हसरत साहिब की कलम, कलाम और कमाल …… सैकड़ों, एक से बढ़ कर एक गीत लिख डाले. इन गीतों का जादू हिंदुस्तान की अवाम के दिल-ओ-दिमाग पर ऐसा चढ़ा कि वह आज भी कायम है और न जाने आने वाली कितनी ही पीढ़ियां उनकी शायरी की मुरीद रहेंगी. हाँ आज ज़रुरत है कि उन मशहूर गानों, जिनको कि अनजाने ही आज भी नौजवान मस्ती में गुनगुना लेते हैं, के शायर से तार्रुफ़ कराया जाए ताकि ये कड़ी आने वाली पीढ़ियों के साथ आगे बढ़ती रहे.
हसरत जयपुरी एक महबूब शायर थे, बचपन में उन्हें राधा नाम की एक पड़ोस में रहने वाली लड़की से प्यार हो गया था. हालांकि मज़हब की बंदिशों की वजह से उनका प्यार परवान न चढ़ सका, लेकिन क्या कभी किसी के दिल और जज़्बात पर किसी की भी हुकूमत चली है? क्या कभी किसी की मोहब्बत पर कोई काबू पा सका है? नहीं I उन्होंने अपना पहला प्रेमपत्र अपनी शायरी की मार्फ़त राधा को नज़र कर दिया था जो कि बाद में १९६६ में बनी मशहूर फ़िल्म “संगम“ के हर दिल अजीज़ गीत “ये मेरा प्रेम-पत्र पढ़ कर …..“ के रूप में उजागर हुआ. हालांकि हसरत साहिब की शादी बिलकीस बानो से १९५३ में हो गयी थी.
हसरत जयपुरी ने हिंदी फिल्मों के लिए सैकड़ों गीत और ग़ज़ल लिखे जो कि दर्शकों और संगीत-साहित्य प्रेमियों के दिल , दिमाग और ज़ुबान पर ऐसे चढ़े कि आज भी इरादतन या गैर-इरादतन उनको दोहराकर लोग रूहानी सुकून महसूस करते हैँ। गीत हो या ग़ज़ल या कोई और सम्बंधित विधा, भाव उसकी आत्मा होते हैँ, और उन भावों को सहज रूप से प्रस्तुत करने के लिए सार्थक शब्दों का चुनाव कर पाना एक कला है। हसरत जयपुरी के गीत भाव प्रधान गीत थे जिन में लोग आसानी से अपनी ज़िन्दगी के साथ साम्य स्थापित कर पाने में सफल होते थे। गीतों के बोलों में सहज और सार्थक शब्दों के चयन की कला ने हसरत को अपने प्रशंसकों के और भी नज़दीक ला दिया था।
हसरत जयपुरी के अधिकांश गीत प्रेम-भाव प्रधान थे। उनके कुछ चुने हुए गीतों की जादुई पंक्तियाँ बरबस ही उनकी क़लम का दीवाना बना देती हैं :
घबराए हाय रे दिल सपनों में आ के कहीं मिल ( आ जा रे अब मेरा दिल पुकारा ****** फ़िल्म “आह“)
तेरे चेहरे की झिलमिल से मंज़िल मिली, ऐसी प्यारी पूनम ( तुझे जीवन की डोर से बाँध लिया ****** फ़िल्म “असली-नक़ली“)
दिल में जब दर्द नहीं बात बनेगी कैसे ( फ़लसफ़ा प्यार का तुम क्या जानो ***** फ़िल्म “दुनियाँ“)
जैसे बरसे कोई बदरिया ऐसे अँखियाँ बरसें ( जिया बेक़रार है छाई बहार है ****** फ़िल्म “बरसात“)
किरनों ने पसारी बाहें कि अरमां नाच नाच लहराएं ( वो चाँद खिला वो तारे हँसे ****** फ़िल्म “अनाड़ी“)
एहसास है क्या और क्या है तड़प इस सोच में दिल डूबा ही नहीं ( तुम कमसिन हो ****** फ़िल्म “आई मिलन की बेला“)
जिस दिल में कोई धड़कन ही न हो वो पत्थर है कोई दिल तो नहीं ( मैं कमसिन हूँ ****** फ़िल्म “आई मिलन की बेला“)
हाय वो दिल ही नहीं जो ना धड़कना जाने और दिलदार नहीं जो ना तड़पना जाने ( तुम रूठी रहो ****** फ़िल्म “आस का पंछी“)
जिसकी पायल पे हम दिल लुटाते रहे जां लुटाते रहे ( जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे *******फ़िल्म “गीत“)
जितनी सागर की गहराई जितनी अम्बर की ऊँचाई उतना तुमसे प्यार है ( बोल मेरे साथिया कितना मुझ से**** फ़िल्म “ललकार“)
अग़र मर जाऊँ रूह भटकेगी तेरे इंतज़ार में, इंतज़ार में, इंतज़ार में ( ये मेरा प्रेम-पत्र पढ़ कर कि तुम *****फ़िल्म “संगम“)
जिस्म को मौत आती है लेकिन रूह को मौत आती नहीं है ( कौन है जो सपनों में आया *******फ़िल्म “झुक गया आसमान“)
हसरत जयपुरी को उनके गीतों के लिए वर्ष १९६६ और १९७२ में श्रेष्ठ गीतकार के रूप में फ़िल्मफेअर पुरस्कार से दो बार नवाज़ा गया, लेकिन ये पुरस्कार सूरज को दिया दिखने से ज़्यादा मायने नहीं रखते हैं. हालाँकि, हसरत साहिब ने १७ सितम्बर १९९९ के दिन इस जहाँ से रुखसत ले ली, लेकिन वो अपने अनमोल गीतों के साथ हमारे ज़ेहन में हमेशा ज़िंदा रहेंगे. खास तौर से इन दो पंक्तियों के साथ …..
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे ( तुम मुझे यूं भुला न पाओगे ******* फ़िल्म “पगला कहीं का“)
चाहे कहीं भी तुम रहो चाहेंगे तुमको उम्र भर, तुमको ना भूल पाएंगे ( जाने कहाँ गए वो दिन ******* फ़िल्म “मेरा नाम जोकर“)
राघवेन्द्र चतुर्वेदी
लेखक के बारे में:
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जनपद इटावा के मूल-निवासी राघवेन्द्र चतुर्वेदी का जन्म कानपुर में हुआ था. उन्होंने इटावा और आगरा में शिक्षा ग्रहण की. शिक्षकों के परिवार में जन्मे राघवेन्द्र, मानवीय मूल्यों और धार्मिक संस्कारों के प्रति सुदृढ़ रूप से आस्थावान हैं.
राघवेन्द्र ने समाजशास्त्र और कार्बनिक रसायनशास्त्र में परास्नातक उपाधि प्राप्त की है और रसायनशास्त्र से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि उत्कृष्ट रसायन (Fine Chemicals), आनुवंशिक रसायन (Genetic Intermediates), सक्रिय औषधीय घटक (Active Pharmaceuticals/Bulk Drugs), बहुलक रसायन परत (Polymer Coatings) और भूषाचार तकनीक (Fashion Technology) में सेवाकार्य किया है.
राघवेन्द्र की व्यावसायिक क्रियात्मक यात्रा अत्यंत गतिशील रही है. उन्होंने एक ओर अत्यंत कठिन और जटिल रासायनिक क्रियाओं का निष्पादन करते हुए संवेदनशील अणुओं जैसे डीएनए, आरएनए तथा प्रोटीन के घटकों और जीवन रक्षक सक्रिय औषधीय पदार्थों जैसे पेनिसिलिन और सिफालोस्पोरिन प्रतिजैविकों पर अनुसन्धान कार्य किया है तो दूसरी ओर अत्यंत क्रियाशील और विस्फोटक प्रकृति के रासायनिक पदार्थों का संश्लेषण भी किया है.
स्वैच्छिक सेवा-निवृत्ति लेने के उपरान्त अब राघवेन्द्र स्वतंत्र रूप से व्यापारिक संस्थानों को तकनीकी परामर्शसेवा देते हैं.
उन से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए raghavendrachaturvedi@yahoo.in पर लिखें
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