‘हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ’??? क्या बस इतना भर कहने से हिंदी के महत्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है? अभी हम यह नहीं कह सकते की हिंदी बहुत समृद्ध भाषा है याकि वह बहुत बड़े क्षेत्रफल में बोले जाने वाली भाषा है. हाँ लेकिन इतना जरूर है कि हिंदी क्षेत्र के बाहर हिंदी की स्थिति सोचनीय है.
हिंदी दयनीय क्यों है? कई लोगों को हिंदी सुनते ही ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ याद आते हैं. क्योंकि वह हिंदी को या हिंदी वालों को हमेशा “प्रेमचंद के फटे जूते” के रूप में देखना चाहते हैं. कोई सिर्फ हिंदी में अध्ययन करके लाखों रूपए कमाने लगे, स्टार- स्टाडम में जीने लगे तो दुनिया हैरान होकर देखती है, ये उसी तरह है जैसे किसी लड़की को फाइटर प्लेन उड़ाते देख दुनिया हैरान हो जाती है.
लेकिन स्थितियाँ बदल रही हैं, ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं जान पड़ती आज के सोशल मीडिया युग में ही देखें तो नज़र आएगा कि कितने ही विदेशी नेताओं ने समय-समय पर हिंदी में ट्वीट किए हैं. इसे हिंदी की ताक़त की तरह देखा जा सकता है. क्योंकि उन्होंने यह समझा की लोगों से जुड़ने के लिए उनकी भाषा को मान देना ज़रूरी है.
लेकिन क्या केवल हिंदी कहने भर से पूरे भारत की बात की जा सकती है?
‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’। भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह पंक्तियाँ मातृभाषा के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए काफी है. लेकिन क्या हिंदी को पूरे भारत की निज भाषा कहा जा सकता है? ऐसा संभव नहीं क्योंकि दक्षिण भारत में अभी भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने को विरोध में बहस और आंदोलन चलते रहते हैं. अपनी-अपनी भाषा के प्रति प्रेम लाज़मी है लेकिन अपनी भाषा को किसी और पर थोपना सही नहीं. स्वतन्त्रता से पूर्व हिंदी को जोड़ने वाली भाषा समझा जाता था लेकिन सियासत ने इसे तोड़ने का हथियार बना दिया है. महाराष्ट्र, असम, तामिलनाडु जैसे राज्यों में न सिर्फ हिंदी बल्कि हिंदी भाषियों को भी अपमान झेलना पड़ा है. महात्मा गांधी ने कभी कहा था कि “दिल से दिल तक संवाद के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं होती.” ऐसी ही बातें हिंदी साहित्य जगत के बड़े लेखक और कवि भी कहते आये हैं. ऐसे ही हिंदी के एक बड़े कवि केदारनाथ सिंह ने भाषा के महत्व की बात की है लेकिन अन्य भाषाओँ की अवहेलना किये बिना.
“मेरी भाषा के लोग
मेरी सड़क के लोग हैं
सड़क के लोग सारी दुनिया के लोग
……
…..
मेरा अनुरोध है —
भरे चौराहे पर करबद्ध अनुरोध —
कि राज नहीं — भाषा
भाषा — भाषा — सिर्फ़ भाषा रहने दो
मेरी भाषा को ।
इसमें भरा है
पास-पड़ोस और दूर-दराज़ की
इतनी आवाजों का बूँद-बूँद अर्क
कि मैं जब भी इसे बोलता हूँ
तो कहीं गहरे
अरबी तुर्की बांग्ला तेलुगु
यहाँ तक कि एक पत्ती के
हिलने की आवाज़ भी
सब बोलता हूँ ज़रा-ज़रा
जब बोलता हूँ हिंदी”
हिंदी के प्रति इसी प्रेम की आज आवश्यकता है.